(‘आने वाली नस्लें शायद मुश्किल से ही विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से बना हुआ कोई ऐसा व्यक्ति भी धरती पर चलता-फिरता था’ - आइंस्टीन ने कहा था। आखिर क्षीण काया के उस व्यक्ति में ऐसा क्या था, कि जिसके अहिंसक आंदोलन से समूची दुनिया पर राज करने वाले अंग्रेज घबराकर भारत छोड़ गए। शायद ही विश्व का कोई देश होगा, जहां उस शख्सियत की चर्चा न होती हो। बात मोहन दास कर्मचंद गांधी की ही है। जिन्हें संसार महात्मा के लक़ब से याद करता है। द फॉलोअप के पाठक अब सिलसिलेवार गांधी और उनके विचारों से रूबरू हो रहे हैं। आज पेश है, 19वीं किस्त -संपादक। )
पुष्परंजन, दिल्ली:
गांधीजी के दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद भारत में उनका प्रथम आश्रम 25 मई, 1915 को अहमदाबाद के कोचरब क्षेत्र में स्थापित किया गया था। 17 जून, 1917 को आश्रम को साबरमती नदी के किनारे खुली जमीन पर स्थांतरित कर दिया गया. यह बंजर भूमि थी! किंवदंतियों में इसे दधीचि के कर्मस्थल से भी जोड़ा गया था! गांधीजी को रहन-सहन, खादी, खेतीबाड़ी, पशु पालन, गौ प्रजनन और दूसरी रचनात्मक गतिविधियों के लिए वीरान, बंजर भूमि की ज़रूरत थी. साबरमती आश्रम (जिसे हरिजन आश्रम भी कहा जाता है), 1917 से 1930 तक मोहनदास करमचंद गांधी का घर था, जो भारत की स्वतंत्रता के आन्दोलन के मुख्य केन्द्रों में से एक था।
देशव्यापी प्रतिरोध के इस अधिकेंद्र में गांधी जी ने ऐसी पाठशाला बनाई जो मानव श्रम, कृषि और साक्षरता को केन्द्रित करके उन्हें आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर कर सकें। यह वही जगह थी जहां से 12 मार्च 1930 को गांधीजी ने आश्रम से 241 मील लम्बी दांडी यात्रा (78 साथियों के साथ) ब्रिटिश नमक कानून जिसमें भारतीय नमक पर "कर" लगा कर ब्रिटिश नमक को भारत में बेचने के प्रयास को बढ़ावा देने के विरूद्ध यात्रा शुरू की थी। दांडी मार्च से ठीक पहले 12 मार्च 1930 को उन्होंने आश्रम में तब तक न लौटने की शपथ ली जब तक भारत स्वतंत्रता नहीं हो जाता है। गांधी जी की हत्या जनवरी 1948 में कर दी गई और वे यहां कभी वापिस नहीं आए।
फिलहाल इस आश्रम की देखरेख छह सदस्यीय ट्रस्ट करता है, जिसकी अध्यक्ष एलाबेहन भट्ट हैं! अब इसे कॉरपोरेट के हवाले करने की ज़ोरदार चर्चा चल रही है! 1200 करोड़ की परियोजना है, नाम है "गांधी आश्रम मेमोरियल एंड प्रेसिंट डेवलॅपमेंट प्रोजेक्ट!" कॉरपोरेट क्या करेगा ? कायाकल्प के बहाने साबरमती का बाजारीकरण करेगा। कारपोरेट मन भाये के अनुरूप नए-नए डिज़ाइन बनाएगा। मोदी-शी चिनफिंग मिलन स्मृति को भव्य तरीके से प्रस्तुत करेगा और उसे देखने के वास्ते सौ से पांच सौ के टिकट लगाएगा।
बीबीसी की खबर के मुताबिक करीब 130 कार्यकर्ताओं और गांधीवादियों ने इसके विरोध में पत्र लिखा है। उनका कहना है कि इस प्रोजेक्ट के लागू होने से गांधीजी की सादगी खत्म हो जाएगी। गांधीजी का सबसे महत्वपूर्ण स्मारक और स्वतंत्रता संग्राम की स्मृतियां धूमधाम और व्यावसायीकरण में हमेशा के लिए खो जाएंगी।
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साबरमती का संत-13: आख़िर पटना के पीएमसीएच के ऑपरेशन थियेटर क्यों पहुंचे थे बापू
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साबरमती का संत-17: संभवतः बिहार की इकलौती जगह जहां गांधी 81 दिनों तक रहे
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(कई देशी-विदेशी मीडिया हाउस में काम कर चुके लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। संंप्रति ईयू-एशिया न्यूज के नई दिल्ली संपादक।)
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।